
प्रिय आत्मन्,
जन्माष्टमी की आनंदमयी वेला में विश्व भर में अनेकानेक भक्त भगवान् श्रीकृष्ण का जन्म दिवस मना रहे हैं। उन सब के साथ शामिल होते हुए हम इस अवसर पर आप सब को स्नेहपूर्ण शुभकामनाएँ भेज रहे हैं। माया के अन्धकार के विरुद्ध संग्राम में, आत्माओं का मार्गदर्शन करने हेतु भगवान् श्रीकृष्ण, दिव्य न्याय-धर्म के पुनर्स्थापक के रूप में तथा ईश्वर के प्रेम और कृपा के दिव्यदूत के रूप में अवतरित हुए थे। वर्तमान समय में भी विश्व को ईश्वर के कल्याणकारी स्पर्श की आवश्यकता है; और मैं प्रार्थना करता हूँ कि श्रीकृष्ण के जीवन की पवित्रता और भव्यता पर गहन ध्यान द्वारा आप उनकी शाश्वत उपस्थिति का अनुभव करें, जिससे आप में आशा का एक नया संचार हो तथा आप में यह विश्वास जगे कि आप ईश्वर के प्रेम से सदैव घिरे हुए हैं।
श्रीकृष्ण उस मनमोहक, आत्मा को हरने वाले दिव्य प्रेम के कितने सुन्दर उदाहरण हैं जिसके द्वारा ईश्वर हमें स्वयं की ओर आकर्षित करते हैं। परन्तु भौतिक जगत् का बहिर्मुखी आकर्षण और सांसारिक आदतें कम बलशाली नहीं हैं, और इसलिए माया की बेड़ियों को तोड़ कर स्वतन्त्र होने के लिए शक्ति और संकल्प का प्रयोग करना पड़ता है। यद्यपि कुरुक्षेत्र की युद्धभूमि पर अर्जुन ने संकोच किया था, श्रीकृष्ण ने उनमें उनके सच्चे वीरोचित स्वभाव को जागृत किया; और यदि हम इच्छुक हों तो वे हमारे लिए भी वैसा ही करेंगे। बाह्य अथवा आन्तरिक चुनौतियाँ हमें हतोत्साहित करने के लिए नहीं आतीं, बल्कि हमारे भीतर छिपे महान्, साहसी आध्यात्मिक विजेता को जगाने के लिए आती हैं। यदि हम उन सुअवसरों का सही उपयोग करें तो वे न केवल हमारे निजी जीवन को एक नई शुरुआत दे सकते हैं बल्कि सम्पूर्ण मानव परिवार की चेतना को उन्नत करने में भी सहायक हो सकते हैं। उस रूपान्तरण में सहभागी होना हममें से प्रत्येक का उत्तरदायित्व भी है और सौभाग्य भी।
जिस प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन की सहायता की, उसी प्रकार आत्मा और अहंकार के बीच हमारे आन्तरिक कुरुक्षेत्र के युद्ध में वे हममें से प्रत्येक की सहायता कर सकते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में बताया गया उनका कालजयी ज्ञान यह है कि आत्मा की मुक्ति के लिए गहन ध्यान और अपने कर्तव्यों को ईश्वर को अर्पित करने से बेहतर अन्य कोई उपाय नहीं है। हम कितने सौभाग्यशाली हैं कि हमने अपने गुरुदेव श्री श्री परमहंस योगानन्द द्वारा वही मुक्तिदायी क्रियायोग विज्ञान प्राप्त किया है, जिसे सहस्रों वर्ष पूर्व भगवान् श्रीकृष्ण ने सिखाया था। श्रीकृष्ण की चेतना से एकरूप महावतार बाबाजी ने उस पवित्र विज्ञान को पश्चिम में लाने और इस आधुनिक युग के लिए एक विशेष आध्यात्मिक विधान के रूप में इसे विश्व भर में प्रसारित करने के लिए परमहंसजी को चुना था। इस वर्ष हम अत्यंत कृतज्ञता के साथ अपने गुरु के पश्चिम में आगमन तथा उनके द्वारा उस अनमोल उपहार को पश्चिम में लाये जाने की शताब्दी मना रहे हैं। इस मार्ग का भक्त होने के नाते, दिव्य लक्ष्य तक जाने वाला पथ आपके सामने खुला हुआ है; और इन महापुरुषों द्वारा दी गयी शिक्षाओं एवं प्रविधियों के पालन द्वारा आपकी विजय सुनिश्चित है।
जय श्रीकृष्ण! जय गुरु!
स्वामी चिदानन्द गिरि